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जब मै बहुत ही छोटा था
तब मेरे माँ-बाप ने
मुझे कहा की बेटा तुम इंसान हो
बहुत फर्क है तुममे और जानवर में,
जब मै थोडा बड़ा हुआ
तब मेरे माँ-बाप ने
मुझे कहा की बेटा तुम एक लड़के हो
बहुत फर्क है तुममे और एक लड़की में,
जब मै और भी बड़ा हुआ
तब मेरे माँ-बाप ने
मुझे कहा की बेटा तुम एक हिन्दू हो
बहुत फर्क है तुममे और एक मुस्लिम में,
जब मै और भी बड़ा हुआ
तब मेरे माँ-बाप ने
मुझे कहा की बेटा तुम इस जाति के हो
बहुत फर्क है तुममे और अन्य जाति में
अब जब मै हूँ बहुत बड़ा
जब मुझसे कोई मिलता है
नहीं पूंछता मुझसे कोई
क्या तुम एक इंसान हो?
नहीं पूंछता मुझसे कोई
क्या तुम एक लड़के हो?
ये बातें तो सभी जान जाते हैं मुझको देखकर
लेकिन मुझसे अक्सर ही
यह पूंछा जाता
क्या है धर्म तुम्हारा?
तुम किस जाति के हो?
आखिर क्यों यह बात नहीं वे पाते जान?
तब मै यही सोंचता हूँ की
क्या वाकई ये धर्म है मेरा
क्या वाकई ये जाति है मेरी
या फिर धर्म से मैं इंसान हूँ
और जाति मेरी है पुरुष…..
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