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इंडिया सपोर्ट्स डिस्क्रिमिनेशन (भाग-1)

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हमारा भारत वर्ष हमेशा से ही अनेकता में एकता का प्रतीक माना जाता रहा है, या कम से कम कहा तो यही जाता रहा है की भारत वर्ष अनेकता में भी एकता का प्रतीक है I मैं भी बचपन से यही मानता चला आया की हाँ वाकई भारत में अलग-अलग प्रांत, अलग-अलग भाषाएँ, अलग-अलग वेश-भूषा, अलग-अलग संस्कृतियाँ, अलग-अलग धर्म-जाति इत्यादि होने के बाद भी यहाँ सभी में एकता है, सभी में भाईचारा है, सभी एक दूसरे के प्रांत, भाषा, पहनावे, संस्कृतियों और जाति-धर्म आदि का आदर करते हैं, किन्तु आज अभी मेरी उम्र बहुत ज्यादा नहीं हुयी है लेकिन फिर भी इन सब ऊपरी दिखावों और एकता भाव के अन्दर ज़्यादातर व्यक्तियों की भेदभाव पूर्ण सोंच को मैंने स्वयं महसूस किया है I
सबसे बड़ा भेद-भाव तो अमीर और गरीब में होता है….गरीब को पशु और अमीर को भगवान् बराबर दर्जा दिया जाता है भारत में I हालांकि यह वर्ग विभेद ज़्यादातर देशों में होता है लेकिन इतनी बुरी तरह का नहीं जितना की यहाँ I खैर मै इस भेद-भाव की ज्यादा बात भी नहीं करना चाहता, बात सिर्फ उन भेद-भावों पर जो प्रमुख रूप से भारत में ही पाए जाते हैं और जिनका कोई औचित्य नहीं है I
कहीं कुछ लोग यह कहते हैं की भाई ये हमारा राज्य है और यहाँ यू० पी०, बिहार के लोग काम नहीं कर सकते…हाँ बड़ी पोस्ट पर काम नहीं कर सकते लेकिन मजदूरी कर सकते हैं, क्योंकि वे स्वयं उतने मजदूर अपने राज्य में नहीं पाते या उतने सस्ते नहीं पाते जितने की यू० पी०, बिहार वाले हैं I चुनाव के समय तो सभी उनके भाई-बंधू बन जाते हैं, लेकिन उसके बाद यू० पी०, बिहार वालों की वही दुर्गति फिर से शुरू हो जाती है….हाँ भाई ये राज्य तो आपके बाप-दादाओं का है वहां हम आपकी मर्ज़ी से ही रह सकते हैं, आप जो कहें वो काम करें, आप जो कहें वही खाएं या न कहें तो खाएं भी नहीं…..यह सिर्फ एक ही राज्य की बात नहीं है ज़्यादातर राज्यों में अन्य राज्य से आये हुए व्यक्ति को हम हे दृष्टि से ही देखते हैं खासकर यदि वह गरीब व्यक्ति हो I.अभी कुछ दिनों पहले ऑस्ट्रेलिया और लन्दन जैसे देशों में भारतीय नागरिकों को मारे-पीटे जाने की कई घटनाएं सामने आ रही थीं, इस पर जब हमारे देश के द्वारा आपत्ति जताई गयी होगी तो उनका यही कहना होगा की भाई हम तो आप ही के देश की परम्परा आगे बढ़ा रहे हैं, जैसे आपके देश में एक राज्य के निवासी को दुसरे राज्य में पीटा जाता है, वैसे ही हम भी आपके देश के नागरिको को इस देश में आने पर पीटते हैं I
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दूसरी तरह का और बहुत ही घातक भेद-भाव जिसने बेवजह न जाने कितने लोगों को मौत के मुंह में सुलाने का काम किया है वह है धार्मिक भेद-भाव I ..कई बार कुछ लोग छोटी सी बात पर ही अन्य धर्म वालों से लड़ाई शुरू कर उसे दंगे में तब्दील कर देते हैं जैसे पिछले दिनों हिन्दुओ और मुस्लिमो में इस बात पर दंगा भड़क गया की एक धर्म के व्यक्ति द्वारा हाँथ धुलते हुए पानी की बूँदें दूसरे धर्म के व्यक्ति के बर्तन पर पड़ गयीं…कोई भी बुद्धि जीवी क्या इतनी छोटी सी बात पर मार-काट और दंगे फैलने को सही ठहरा सकता है? शायद कोई भी नहीं लेकिन जब ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जाए तो होशोहवाश खोके सब के सब इसमें कूद पड़ेंगे i यहीं पर परिस्थितियां एकदम सामान्य होतीं अगर पानी भरने वाला व्यक्ति और हाँथ धुलने वाला व्यक्ति एक ही धर्म से ताल्लुक रखता होता i या ज्यादा से ज्यादा एक-दो गाली का लेन-देन और बात रफा-दफा किन्तु किसी भी कीमत पर दंगा नहीं फैलता क्योंकि दोनों एक ही वर्ग के होते तो किसी वर्ग के अन्य व्यक्ति का खून ही नहीं खौलता, लेकिन व्यक्ति दूसरे धर्म के थे इसलिए उन सबका खून खौल गया जिन्हें शायद पता भी न चला हो की असल में हुआ क्या था? अब ये भी देखिये की ये अलग-अलग धर्म कहाँ से आये? आपका बाप हिन्दू है? हाँ….तब तो आप भी हिन्दू हैं I आपका बाप मुस्लिम है? हाँ…यानी आप मुस्लिम और इसी तरह सभी धर्मो में होता है….मतलब क्या है ऐसे धर्म का जिसके बारे में मैं कुछ भी नहीं जानता था, पैदा होते ही मै उस धर्म का अनुयायी हो गया…अरे मैं पैदा होने से लेकर कम से कम 2 -4 साल की उम्र तक तो यह भी नहीं जान सकता की धर्म क्या होता है और इस धर्म और अन्य धर्म में क्या फर्क है? फिर धीरे-धीरे बड़ा हुआ तो माँ-बाप के मुंह से अपने धर्म की बड़ाई और बाकी सारे धर्मो की बुराई सुनता आया, हाँ यानी की मेरा ही धर्म सबसे श्रेष्ठ है I मै धन्य हो गया की मै इस धर्म का अनुयायी हूँ, भैया मेरी बात मानो तुम भी मेरे धर्म को मानो नहीं तो नरक में जाओगे, मेरे धर्म को मानोगे तो तुम पर ऊपर वाले की कृपा होगी I …..किसने बनाया ये धर्म-जाति सबके धर्म तो स्वर्ग से उतरे हैं…सबकी पुस्तकें ऊपर वाले ने स्वयं लिखी हैं….ऐसा कैसे? नहीं ये सब सोंचने की ज़रुरत नहीं है अगर ज्यादा दिमाग चलाया और बहस की तो मरने के बाद सीधे नरक की आग में जलोगे और लाखों कोड़े बरसेंगे तुम पर….अच्छा.. नहीं नहीं मुझे आग से और कोड़े से बहुत डर लगता है…आ गए न लाइन पर, अब ठीक है अब सब अच्छा होगा और अधिक अच्छा तब होगा जब तुम औरों को अपने धर्म में शामिल कर पाओ उनसे अपने धर्म की बड़ाई करो तथा जहां हो सके ज़बरदस्ती दूसरे का धर्म परिवर्तन कराके अपने धर्म में शामिल करवा दो…ऊपर वाला खुश हो जाएगा…..अच्छा ये ऊपर वाला कौन?….वो जो सर्व शक्तिमान है, जिसके बिना एक पत्ता भी इधर से उधर नहीं हिलता, जिसकी मर्ज़ी से सब लोग जन्म लेते और मरते हैं, दुनिया के समस्त काम जिसकी इच्छा के बिना नहीं हो सकते …..अच्छा वो इतना शक्तिशाली है तो वो खुद ही क्यों नहीं सभी को अपने धर्म में पैदा करता, और अगर उसकी मर्ज़ी के बिना कोई काम नहीं होता तो क्या दुनिया में जितने भी पाप और कुकर्म हो रहे हैं, जितने भी भ्रष्टाचार हो रहे हैं, सब उसी की मर्ज़ी से हो रहे हैं?….बकवास बंद कर अच्छे काम का ठेका उसका है बुरे कामो का ठेका शैतान का है…..अच्छा इसका मतलब आज कल शैतान ज्यादा शक्तिशाली है और भगवान् कमज़ोर हो गया है, इसके अलावा एक प्रश्न और की क्या जिस तरह हम लोग आपस में धर्म और अपने भगवान् का नाम लेकर लड़ाई करते हैं वैसे ही क्या ऊपर भी सारे धर्मो के भगवान् आपस में लड़ते होंगे? ये भगवान्, अल्लाह, वाहे गुरु, गौड क्या इन सबने ही हमारी उत्पत्ति की है? अगर इन सबने ही हमारी उत्पत्ति की है तो अलग-अलग धर्म के लोगों में पैदाइशी रूप में कुछ तो बदलाव कर ही देना चाहिए था इन्हें, ताकि कभी भूल वश कोई बच्चा इधर-उधर हो जाए, या जिसे उसके माता-पिता अनाथालय में छोड़ आयें, उसके धर्म का कुछ तो पता चले….या आपको लगता है की ऊपर वाले में इतनी अक्ल नहीं होगी अथवा उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है की कौन किस धर्म को मानने वाला है…या कहीं ऐसा तो नहीं की ऊपर वाले ने हमारी उत्पत्ति न की हो और हम अलग-अलग बुद्धिमान लोगों ने अपने अलग-अलग ऊपर वाले की उत्पत्ति कर दी हो? वर्ना कभी न कभी तो ऊपर वाले भी हमारे सामने आ ही जाते और कहते की बस अब बस करो ये लड़ाई-दंगा, ये खून खराबा! …….अब आप ही तय करो क्या सही क्या गलत….(अफ़सोस है की इस तरह के लेख पर लोग अपनी प्रतिक्रिया देने से भी डरते हैं,
बस कुछ लोग हिम्मत कर पाते हैं…बाकी तो धर्म का नाम आते ही अंधे हो जाते हैं,
और मज़े की बात ये है की झूठ बोलते हुए, किसी को धोखा देते हुए, मांस-मदिरा का सेवन करते हुए इनका धर्म कहाँ गायब हो जाता समझ में नहीं आता)

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